अनगिनत वर्षो से सोए भारतवर्ष ने
अभी तो आँखे खोली हैं |
अभी तो पहली अंगड़ाई ली है और
शरीर पे चिपके बैठे कीड़े मकोड़ो में हाहाकार मच गया है
करवट लेना शुरू ही किया है के
सब कुछ हड़पने की ताक में बैठे पड़ोसियों के चेहरों की रंगत चली गयी है
अभी तो उठना बाकी है
उठने पर ना जाने कितने सालो से जमी भ्रास्तचार रूपी गर्द उडेगी
जिसपर सोया था ये भारतवर्ष
उस चादर को झटकने पर ना जाने कितने काले सिक्के उड़ेंगे
नहाकर जब ये पूजन को चलेगा
तब यह धरती माँ का जलाभिषेक कर इसको पुनः पावन कर देगा
शंखनाद और मृदन्गम से उद्घोष कर
धरा का वातावरण पुनः पवित्र और मनभावन कर देगा
फिर यह शिक्षक उद्दंड विद्यार्थी विश्व समुदाय को
पुनः एकल मंच और कक्षा में ला कर जगतगुरू होने का दायित्व निभाएगा
अभी तो आँखे खोली हैं |
अभी तो पहली अंगड़ाई ली है और
शरीर पे चिपके बैठे कीड़े मकोड़ो में हाहाकार मच गया है
करवट लेना शुरू ही किया है के
सब कुछ हड़पने की ताक में बैठे पड़ोसियों के चेहरों की रंगत चली गयी है
अभी तो उठना बाकी है
उठने पर ना जाने कितने सालो से जमी भ्रास्तचार रूपी गर्द उडेगी
जिसपर सोया था ये भारतवर्ष
उस चादर को झटकने पर ना जाने कितने काले सिक्के उड़ेंगे
नहाकर जब ये पूजन को चलेगा
तब यह धरती माँ का जलाभिषेक कर इसको पुनः पावन कर देगा
शंखनाद और मृदन्गम से उद्घोष कर
धरा का वातावरण पुनः पवित्र और मनभावन कर देगा
फिर यह शिक्षक उद्दंड विद्यार्थी विश्व समुदाय को
पुनः एकल मंच और कक्षा में ला कर जगतगुरू होने का दायित्व निभाएगा